गुरुदेव के अनुसार सतयुग की वापसी 21वीं सदी में हो जाएगी । परंतु महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है सतयुग की वापसी के लिए क्या प्रक्रियाएँ और घटनाएं होंगी जिससे कलयुग का अंत हो जाएगा ।
विज्ञान की दृष्टि से ही देखें तो लोगों को ज्यादा विश्वास दिला सकने में आसानी होगी । विज्ञान की दृष्टि के अनुसार विश्वव्यापी आपदाओं को नहीं भुलाया जा सकता, ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते घनत्व के कारण कोई भी खाद्य पदार्थ शुद्ध नहीं रह गया, भौतिक संसाधनों से उत्पन्न होने वाले विकिरणों के कारण मानव समाज में फैलता हुआ रोग अनदेखा नहीं किया जा सकता । तेजी से ग्लेशियर के स्तर का घटना, समुद्र के स्तर का बढ़ना और अनेकों आपदाओं का आना इस बात का उदाहरण है की कलयुग की समाप्ति की शुरुआत प्रारंभ हो चुकी है ।
यह परिस्थिति धीरे धीरे बढ़ती जाएगी क्योंकि इसकी रोकथाम को कर पाने के लिए पृथ्वी के सभी मानव द्वारा अनेकों प्रयास के बावजूद हमने प्रदूषण , विकिरण, पेड़ों के कटाव और बीमारियों की रोकथाम को पूर्णहन रोक सकने में नाकामयाब रहे ।
क्या असर होगा इन सबका -
इन सबका परिणाम बहुत जल्दी ही बहुत भयावह रूप लेने वाला है जो तमाम बुद्धिजीवियों को भी नहीं दिखाई पड़ रहा है । खास करके हम बात उनकी करेंगे जो ऐशों-आराम की जिंदगी में मस्त हैं । उनके लिए अच्छा संदेश नहीं दिख रहा । कहीं पर कोई महामारी, बीमारी अथवा प्राकृतिक आपदा तबाही का रूप लेगी , जिसमें बच सपने में वही सक्षम होंगे जिन्होंने ऐशों-आराम की जिंदगी से दूर रह पुरुषार्थ किए । जिन्होने सुविधा-संग्रह-भोग के जीवन को गुजारा है उनके अंदर शारीरिक और मानसिक क्षमता अपूर्णहोने के कारण ऐसे लोगों का स्वयं को और स्वयं की पीढ़ी को सतयुग के द्वार तक पहुंचा सकने में असफलता होगी ।
कैसे तैयार करें सतयुग के लिए स्वयं को -
सतयुग के द्वार तक पहुंचने का अर्थ है पृथ्वी के नवजीवन में प्रवेश । जहाँ आपकी पीढ़ी भी गतिशील रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही । किंतु सतयुग के द्वार तक पहुंचना सभी के लिए साधारण नहीं । इसके द्वार तक पहुंचने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से अपूर्व क्षमता चाहिए ,इसके साथ भावनात्मक बल चाहिए । हालांकि, यह कार्य प्रकृति का है इसलिए पूरी तरह से न्याय पूर्वक होगा । जो लोग अपनी आने वाली पीढ़ियों के साथ शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हो पाएंगे वे वहाँ तक नही पहुंच पाएंगे । विकृत लोग , भेदवादी, कुरीतिवादी, महत्वाकांक्षी , भोगी, लोभी लोग स्वयं प्रकृति द्वारा छट कर समाप्त हो जाएँगे । भावनात्मक रूप से समृद्ध दयावान, सेवाभावी निर्गुण, और पुरुषार्थी लोग रह जाएंगे ।